Wednesday, 8 March 2017

सात समंदर पार!

दिन-रात बेचैन मेरा, मन आँहे भरता है
बे-करारी बढ़ती पर, संकोच भी बढ़ता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है
मै कैसे उसे पाऊं, मेरा दिल तरसता है

किसी बच्चे की भाँती,
मै चंचल हूँ, बेबाक हूँ
कहने को मै शेरदिल पर,
चलता-फिरता मज़ाक हूँ
लोग कभी हँसतें तो,
कभी ताना कसतें हैं
वो क्या जाने मन में मेरे,
महबूब बसतें हैं
तन्हा-बेज़ुबाँ मन, मेरा सवाल करता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...

दिल मत देना कहकर,
सब दिल देते रहते हैं
बिन-दिल चाहे जितना,
सब दर्द बढ़ा सहते हैं
प्यार-व्यार के चक्कर में,
सब रहते बढ़े उदास हैं
दिलबर के साथ गुज़ारे,
हर लम्हें होतें खास हैं
देख प्रेमी-युग्म को, बादल भी बरसता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...

इंतज़ार मे उनके मैंने,
पलकें बिछा रखीं हैं
रोशन करने राह को,
डिबिया जला रखीं हैं
ये बारिश-बादल-सावन,
ये रात जब छट जायेगी
तब शायद महबूब के
आने की आहट आयेगी
आँखों की प्यास को, मेरा मन सिसकता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...

अधूरे सपनें और प्यार की,
एहमियत न कोई पहचाने
क्या पूरी मोहब्बत आजतक,
हुई किसी-की रब जाने!
मै दुआ सदा बस यही करूँ,
मेरा प्यार सदा खुशहाल रहे
बेशक मुझे यूं तड़पने को,
छोड़ गया बिन-कुछ भी कहे
रोशनी को परवाना, हर रात मरता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...
  - नितेश सिंह (दिप्पी)

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