Friday, 17 March 2017

रात (2008)

हर शाम के बाद रात आती है
और दिन-रात तेरी याद आती है
भूलने की कोशिश भी हम करने लगे थे
पर दिल मे प्यार के जज्बात बाकी है

क्या हो गया ये सोच कर हम पछताते नही
दूर जाने के ग़म से ज्यादा कुछ हम खाते नही
मिलेंगे फिर ये अरमान-ए-दिल कहते है
बस एक इसी आस मे सनम हम मर जाते नही
   - नितेश सिंह (मासूम)

Thursday, 16 March 2017

क्या यही प्यार है! (2008)

जब किसी काम के लिये कोई घर से निकलता है
पर जाने क्यूं वो अपना काम ही भूल जाता है!
जब खुली आँखें सिर्फ एक ही छाया-चित्र अंकित करती हैं
बन्द आँखे और खूब चल-चित्र प्रस्तुत करती हैं!
क्या है ये! क्या वो शख्स बीमार है!
या बताओ ऐ दोस्त, 'क्या यही प्यार है!'

नाम किसी का लेते वक्त जब नाम एक ही निकलता है
नाम मे क्या रखा है कह कर काम फिर भी चलता है!
सपने उसी के आते है, दिन या रात जब हो जाती है
पर याद मे डूबे हुये उसे निन्द भी कहां आती है!
ढूंढ रही है उसकी आँखे, जिसे देखने को बेकरार है
तुम ही बताओ ऐ दोस्त, 'क्या यही प्यार है!'

सिर्फ एक अच्छी दोस्त मान, ज़िन्दगी नही बिताई जाती
सिर्फ इसी ख्याल के साथ भी तो निन्द तक नही आती
जज़्बातों की आंधी जब तूफान बन के आयेंगी,
फूट पड़ेंगे दिल के शैलाब, और आँख भी भर जायेंगी
इतना जब हो किसी को, तो क्या जवाब इन्कार है!
एक पल सोचो ज़रा ऐ दोस्त, 'कहीं यही तो नही प्यार है!'
   - नितेश सिंह (मासूम)

Friday, 10 March 2017

होली है!!!

बुरा ना मानो होली है,
किस्मत ने आँख मिचोली है!
पर संग अगर हमजोली है,
सारी दुनिया को गोली है!

आओ रंगों से भीग चलें,
दुनिया वाले चाहे जलते जलें!
संग हम-तुम खो जाऐं भलें,
मलने वाले फिर हाथ मलें!

कान्हा तो रास रचाऐंगे,
संग गोपियों के जायेंगे!
ना-समझ बस गाल बजायेंगे,
पर भक्त-गण लुफ्त उठाऐंगे!

इस बेला पर मै नमन करूँ,
गुरू-साधू को हरदिन करूँ!
दण्डवत अष्टांग करूँ,
जय जय राधा-रमन करूँ!
  - नित्य मुकुन्द दास (साधक)

Wednesday, 8 March 2017

सात समंदर पार!

दिन-रात बेचैन मेरा, मन आँहे भरता है
बे-करारी बढ़ती पर, संकोच भी बढ़ता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है
मै कैसे उसे पाऊं, मेरा दिल तरसता है

किसी बच्चे की भाँती,
मै चंचल हूँ, बेबाक हूँ
कहने को मै शेरदिल पर,
चलता-फिरता मज़ाक हूँ
लोग कभी हँसतें तो,
कभी ताना कसतें हैं
वो क्या जाने मन में मेरे,
महबूब बसतें हैं
तन्हा-बेज़ुबाँ मन, मेरा सवाल करता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...

दिल मत देना कहकर,
सब दिल देते रहते हैं
बिन-दिल चाहे जितना,
सब दर्द बढ़ा सहते हैं
प्यार-व्यार के चक्कर में,
सब रहते बढ़े उदास हैं
दिलबर के साथ गुज़ारे,
हर लम्हें होतें खास हैं
देख प्रेमी-युग्म को, बादल भी बरसता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...

इंतज़ार मे उनके मैंने,
पलकें बिछा रखीं हैं
रोशन करने राह को,
डिबिया जला रखीं हैं
ये बारिश-बादल-सावन,
ये रात जब छट जायेगी
तब शायद महबूब के
आने की आहट आयेगी
आँखों की प्यास को, मेरा मन सिसकता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...

अधूरे सपनें और प्यार की,
एहमियत न कोई पहचाने
क्या पूरी मोहब्बत आजतक,
हुई किसी-की रब जाने!
मै दुआ सदा बस यही करूँ,
मेरा प्यार सदा खुशहाल रहे
बेशक मुझे यूं तड़पने को,
छोड़ गया बिन-कुछ भी कहे
रोशनी को परवाना, हर रात मरता है
सात समंदर पार, मेरा प्यार बसता है...
  - नितेश सिंह (दिप्पी)

Monday, 27 February 2017

भारतीय नारी

कहती हूँ कुछ जब मजबूर बड़ी होती हूँ 
बेवजह बोलने की ज़रा भी शौकीन नहीं
तुम्हारे सारे काम चुप-चाप करती हूँ
इन्सान हूँ मै भी जानेमन, कोई मशीन नहीं

ब्याह के लाये थे तुम मुझे रानी बनाने को
नौकरानी से ज्यादा का अहसास होने न दिया
दिन-भर घर के कामों ने मुझे व्यस्त रखा
रात को मेरे स्वामी, तुमने सोने न दिया

मेरी व्यथा सिवाए तुम्हारे कौन समझेगा
ससुराल मे तो मेरी कोई सहेली तक नहीं
शादी के बाद जियुँगी खुल के पति के साथ
ये सोच कर मायके मे खाई-खेली तक नहीं

मेरे प्राणनाथ, दिलबर, सपनों के सहज़ादे
मुझ पर कभी प्यार की एक नज़र तो डालो
सिर्फ साथ रहने, खाने-पीने, सोने के अलावा
तिर्छी नज़र के तीर चला, बांहों में मुझे सम्भालों

मुझे अपनी मल्लिका, प्रेयसी, दिलरुबा जानकर
कभी मेरे साथ भी दो घड़ी प्यार से बैठ जाया करों
आदेश नही फ़रीयाद करती है अर्द्धान्गनी तुम्हारी
जम्मेदारियों से हट कर भी कुछ समय बिताया करों

यूँ तो ज़िन्दगी कट ही जायेगी रिश्ता निभाते
पर यादें नहीं रहेंगी बुढ़ापा काटने के लिए
कोई साथ नहीं बचेगा होश सम्भलते ही
एक मैं ही रह जाऊंगी साथ बाटने के लिए

ये लिख छोड़ गई वो इन्तज़ार मे उनके आने को
कि शायद देख पतिदेव चले आऐं उसे मनाने को
न सोचा उसने स्वामी क्या ज़वाब देंगे ज़माने को
चली गई घर की आबरू, न छोड़ा मुँह दिखाने को

अब चाहें दोनो मिलना एक-दूसरे से बेशुमार
पर ये इन्तज़ार है जो खत्म होके नही देता
ये समाज, ये परिवार, ये जिम्मेदारी और
पति का फर्ज़ पति को प्रेमी होने नही देता
   - नितेश सिंह (पति)

Friday, 24 February 2017

मै चाहता हूँ

बचपन से दौड़ रहा हूँ,
अब कुछ करना चाहता हूँ
थक गया हूँ जीते-जीते,
बस अब मरना चाहता हूँ

जिन्दगी है मेरी पर,
औरों के नाम करता रहा हूँ
जीकर किसी के वास्ते खुद,
घुट-घुट कर मरता रहा हूँ

याद नही किसी दिन,
मैने कोई सपना देखा
बिन बन्दिश जीने का,
न मैने बचपन देखा

बारी-बारी सब ने,
मुझसे ख्वाब सजाऐं
बिन पूछे आँखों में,
अपने ही ख्वाब दिखाऐं

कोई इन्जीनियर डाॅक्टर, 
कोई वकील कलेक्टर
कोई चाहे बनाना मुझको,
खाकी वर्दी का इन्सपेक्टर

अपने अरमान अपने मसले
सबको सदा सुहाते हैं
बस pressure बनाने को,
सब मिलकर सुनाते हैं

दलीलें सुनकर सबकी,
अवाक रह जाता हूँ सदा!
हरदिन कुत्ता खदेड़ से
बचाले मुझको ऐ खुदा!

क्यों नहीं पूछता कोई,
मै क्या करना चाहता हूँ!
थक गया हूँ जीते-जीते,
बस अब मरना चाहता हूँ!
   - नितेश सिंह (confusiya)

महा शिव-रात्रि

आई रे आई फिर से, आई वो रात्रि
सबको मुबारक हो, Happy शिव-रात्रि

बम बम भोले जयकारा लगा, 
           इसका सब स्वागत करें
भोलेनाथ को प्रसन्न कर भक्त, 
          जीवन मे खुशियाँ भरें

भूतनाथ को खुश करना, 
          कोई टेढ़ी खीर नहीं
स्वच्छ मन से प्रार्थना कर, 
          दर्शन देते वो हर कहीं

भोले-शम्भु-हर हर महादेव, 
          जिसभी नाम से भक्त बुलाते हैं
भोले-भन्डारी महाकाल वो, 
          प्रेम-विवश चले आते हैं

विश्वनाथ-दुर्गापति वो, 
          इतनी मदद कर जाते हैं
अन्तकाल स्मरण-मात्र से हम, 
          भव-सागर तर जातें हैं

नीलकण्ठ शिव-शंकर ने, 
          मंथन का स्वं विषपान किया
वेग घटा गंगाधर ने, 
          गंगामृत हमको दान दिया

आओ इस पावन पर्व पर, 
          दिल से सारे मिलकर बोलें
जय महाकाल शिव-शम्भु, 
          हर हर महादेव बम-बम भोले
  - नित्य मुकुन्द दास (साधक)