Friday, 24 February 2017

मै चाहता हूँ

बचपन से दौड़ रहा हूँ,
अब कुछ करना चाहता हूँ
थक गया हूँ जीते-जीते,
बस अब मरना चाहता हूँ

जिन्दगी है मेरी पर,
औरों के नाम करता रहा हूँ
जीकर किसी के वास्ते खुद,
घुट-घुट कर मरता रहा हूँ

याद नही किसी दिन,
मैने कोई सपना देखा
बिन बन्दिश जीने का,
न मैने बचपन देखा

बारी-बारी सब ने,
मुझसे ख्वाब सजाऐं
बिन पूछे आँखों में,
अपने ही ख्वाब दिखाऐं

कोई इन्जीनियर डाॅक्टर, 
कोई वकील कलेक्टर
कोई चाहे बनाना मुझको,
खाकी वर्दी का इन्सपेक्टर

अपने अरमान अपने मसले
सबको सदा सुहाते हैं
बस pressure बनाने को,
सब मिलकर सुनाते हैं

दलीलें सुनकर सबकी,
अवाक रह जाता हूँ सदा!
हरदिन कुत्ता खदेड़ से
बचाले मुझको ऐ खुदा!

क्यों नहीं पूछता कोई,
मै क्या करना चाहता हूँ!
थक गया हूँ जीते-जीते,
बस अब मरना चाहता हूँ!
   - नितेश सिंह (confusiya)

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