कभी सपनों से हकीक़त
में आना ज़िन्दगी
शागिर्द मुझे अपना बनाना
ज़िन्दगी
सुना है बड़ी हसीन है तू
जीने में
कभी हुनर मेरा भी आज़माना
ज़िन्दगी
अनमोल तो किसी की सस्ती है
ज़िन्दगी
किसी की अपने प्यार में
बसती है ज़िन्दगी
हसरतें तो कर लूँ मै भी सदा
जीने की
पर किसी पल भी सिमट सकती है
ज़िन्दगी
ख़ुद में ख़ुश रहने का फ़लसफ़ा
है ज़िन्दगी
धोखे खाकर भी करना वफ़ा है
ज़िन्दगी
आसाँ है किसी को भुला कर
अकेले जीना
बनाना दुश्मन को भी हमनवाँ
है ज़िन्दगी
खुद ही खुद को मिटा दूँ तो
क्या है ज़िन्दगी!
हर ग़म को हटा दूँ तो क्या
है ज़िन्दगी!
उजालों में आकर ही समझ में
आया
अन्धेरें छटां दूँ तो क्या
है ज़िन्दगी
-
नितेश सिंह (संवेदनशील)
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