Monday, 13 February 2017

ज़िन्दगी

कभी सपनों से हकीक़त में आना ज़िन्दगी
शागिर्द मुझे अपना बनाना ज़िन्दगी
सुना है बड़ी हसीन है तू जीने में
कभी हुनर मेरा भी आज़माना ज़िन्दगी

अनमोल तो किसी की सस्ती है ज़िन्दगी
किसी की अपने प्यार में बसती है ज़िन्दगी
हसरतें तो कर लूँ मै भी सदा जीने की
पर किसी पल भी सिमट सकती है ज़िन्दगी

ख़ुद में ख़ुश रहने का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी
धोखे खाकर भी करना वफ़ा है ज़िन्दगी
आसाँ है किसी को भुला कर अकेले जीना
बनाना दुश्मन को भी हमनवाँ है ज़िन्दगी

खुद ही खुद को मिटा दूँ तो क्या है ज़िन्दगी!
हर ग़म को हटा दूँ तो क्या है ज़िन्दगी!
उजालों में आकर ही समझ में आया
अन्धेरें छटां दूँ तो क्या है ज़िन्दगी

    -    नितेश सिंह (संवेदनशील)

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