Friday, 10 February 2017

वादा किया था!

कैसे भूल जाऊं मुझे प्यार है,
किसी को मैंने वादा किया था
कैसे छोड़ दूँ तन्हा उसे फिर
संग जीने का पक्का इरादा किया था

जब कोई नहीं था साथ मेरे, उसने
थामा था हाथ, दिल पर रखा था
समझाया था जीने का मतलब, मकसद
उसका बस मुझे देना वफ़ा था

सुन्दर था दिल उसका, दिल को
संभाल कर वो रखती थी
मुँह से कुछ न कहती  कभी, बस
आँखों से ही वो तखती थी

मै समझ गया गहराई उसकी, एक दिन
Propose भी कर डाला था
धीमी मुस्कान, झुकी आँखें, अंदाज़
उसका यही निराला था

वो वक़्त अच्चा था, हमने
जो एक साथ गुज़ारा था
संग उठना-बैठना, खाना-खेलना, जीने का
बस वही तो एक सहारा था

किस्मत की करवट को कौन कोसे,
समझ पाना ही मुमकिन नहीं
हम अब साथ नहीं, न होंगे कभी
इस बात पर ना होता यकीं

वो वहां अकेली पड़ गयी,
परिस्तिथियों से जूझ रही है
अबला, बेचारी, तन्हा वो,
बस मुझे ही ढूंढ रही है

पर मै समाज-परिवार की
महत्त्वाकांक्षा में धंस गया हूँ
बिना-मर्ज़ी, बेमानी इस
शादी में फँस गया हूँ

कैसे गुज़रे वक़्त को
लौटा पाऊं, सोचता हूँ
उन गलियों में भटकता हूँ, खुद को
ख्वाबों में रोकता हूँ

ये मंज़र आएगा, किस्मत ने
मुझे ये ईशारा किया था
कैसे भूल जाऊं मुझे प्यार है,
किसी को मैंने वादा किया था

     -    नितेश सिंह (बेचारा)

No comments:

Post a Comment