कहती हूँ कुछ जब मजबूर बड़ी होती हूँ
बेवजह बोलने की ज़रा भी शौकीन नहीं
तुम्हारे सारे काम चुप-चाप करती हूँ
इन्सान हूँ मै भी जानेमन, कोई मशीन नहीं
ब्याह के लाये थे तुम मुझे रानी बनाने को
नौकरानी से ज्यादा का अहसास होने न दिया
दिन-भर घर के कामों ने मुझे व्यस्त रखा
रात को मेरे स्वामी, तुमने सोने न दिया
मेरी व्यथा सिवाए तुम्हारे कौन समझेगा
ससुराल मे तो मेरी कोई सहेली तक नहीं
शादी के बाद जियुँगी खुल के पति के साथ
ये सोच कर मायके मे खाई-खेली तक नहीं
मेरे प्राणनाथ, दिलबर, सपनों के सहज़ादे
मुझ पर कभी प्यार की एक नज़र तो डालो
सिर्फ साथ रहने, खाने-पीने, सोने के अलावा
तिर्छी नज़र के तीर चला, बांहों में मुझे सम्भालों
मुझे अपनी मल्लिका, प्रेयसी, दिलरुबा जानकर
कभी मेरे साथ भी दो घड़ी प्यार से बैठ जाया करों
आदेश नही फ़रीयाद करती है अर्द्धान्गनी तुम्हारी
जम्मेदारियों से हट कर भी कुछ समय बिताया करों
यूँ तो ज़िन्दगी कट ही जायेगी रिश्ता निभाते
पर यादें नहीं रहेंगी बुढ़ापा काटने के लिए
कोई साथ नहीं बचेगा होश सम्भलते ही
एक मैं ही रह जाऊंगी साथ बाटने के लिए
ये लिख छोड़ गई वो इन्तज़ार मे उनके आने को
कि शायद देख पतिदेव चले आऐं उसे मनाने को
न सोचा उसने स्वामी क्या ज़वाब देंगे ज़माने को
चली गई घर की आबरू, न छोड़ा मुँह दिखाने को
अब चाहें दोनो मिलना एक-दूसरे से बेशुमार
पर ये इन्तज़ार है जो खत्म होके नही देता
ये समाज, ये परिवार, ये जिम्मेदारी और
पति का फर्ज़ पति को प्रेमी होने नही देता
- नितेश सिंह (पति)
बेवजह बोलने की ज़रा भी शौकीन नहीं
तुम्हारे सारे काम चुप-चाप करती हूँ
इन्सान हूँ मै भी जानेमन, कोई मशीन नहीं
ब्याह के लाये थे तुम मुझे रानी बनाने को
नौकरानी से ज्यादा का अहसास होने न दिया
दिन-भर घर के कामों ने मुझे व्यस्त रखा
रात को मेरे स्वामी, तुमने सोने न दिया
मेरी व्यथा सिवाए तुम्हारे कौन समझेगा
ससुराल मे तो मेरी कोई सहेली तक नहीं
शादी के बाद जियुँगी खुल के पति के साथ
ये सोच कर मायके मे खाई-खेली तक नहीं
मेरे प्राणनाथ, दिलबर, सपनों के सहज़ादे
मुझ पर कभी प्यार की एक नज़र तो डालो
सिर्फ साथ रहने, खाने-पीने, सोने के अलावा
तिर्छी नज़र के तीर चला, बांहों में मुझे सम्भालों
मुझे अपनी मल्लिका, प्रेयसी, दिलरुबा जानकर
कभी मेरे साथ भी दो घड़ी प्यार से बैठ जाया करों
आदेश नही फ़रीयाद करती है अर्द्धान्गनी तुम्हारी
जम्मेदारियों से हट कर भी कुछ समय बिताया करों
यूँ तो ज़िन्दगी कट ही जायेगी रिश्ता निभाते
पर यादें नहीं रहेंगी बुढ़ापा काटने के लिए
कोई साथ नहीं बचेगा होश सम्भलते ही
एक मैं ही रह जाऊंगी साथ बाटने के लिए
ये लिख छोड़ गई वो इन्तज़ार मे उनके आने को
कि शायद देख पतिदेव चले आऐं उसे मनाने को
न सोचा उसने स्वामी क्या ज़वाब देंगे ज़माने को
चली गई घर की आबरू, न छोड़ा मुँह दिखाने को
अब चाहें दोनो मिलना एक-दूसरे से बेशुमार
पर ये इन्तज़ार है जो खत्म होके नही देता
ये समाज, ये परिवार, ये जिम्मेदारी और
पति का फर्ज़ पति को प्रेमी होने नही देता
- नितेश सिंह (पति)