Thursday, 8 December 2016

क्या हो गया !



क्या था मै , और क्या हो गया !
खुद से मिला भी नहीं , और खो गया !

ज़िन्दगी की इस दौड़ में चलना आसान तो नहीं
खुद से बिछड़ के , खुद से मिलना आसान तो नहीं

चाह थी मेरी उस मौला से मिलने की एक दिन
अपनों के सपनो को पूरा करने चला उसके बिन

राह कठिन थी , उसके बिन नामुमकिन हो गयी
अर्जुन को मिली भगवद-शिक्षा , सही साबित हो गयी

वापिस बचपन में जाना , बेवकूफी - सा लगता है
जहाँ बस माँ के आँचल में छुपना ही स्वर्ग लगता है

कोई नहीं है जिसे अपना हाल – ए – दिल सुना सकूँ
काँधे पर रख के सर रोलूं , भीगूँ भी और भिगा सकूँ

आज खुद को पहचानना तक दुश्वार हो गया
सोचता हूँ क्या था मै , और क्या हो गया !


-    नितेश सिंह (बुद्धिया)

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