मैंने एक सपना देखा
उसमें कोई अपना देखा
सपना तो टूट गया जगने पर
पर आपना साथ रह जाता है
जब आँख खुली थी इस दुनिया
में
मै था किसी अपने की बाहों
में
भूल भले ही गया हूँ अब सब
पर वो अहसास रह जाता है
ऊँगली पकड़ के चलना सिखाते
हमको गिरना संभलना
सिखाते
आज चला मै अपने रस्ते
पर सर पर हाथ रह जाता है
पढा-लिखा कर बड़ा किया है
अपने पैरों पर खड़ा किया
है
आज मन मर्ज़ी का काम करता
हूँ
पर अरमान किसी का रह जाता
है
कभी कुछ नहीं माँगा मुझसे
देते रहे वो सब चुपके से
नए रिश्तो को बनाने हेतु
रिश्ता पुराना रह जाता है
दर्द समझ नहीं आता मुझको
न क़र्ज़ चुकाना आता मुझको
हूँ अमानत मै भी किसी की
जिनका बस नाम रह जाता है
काश मै उनको समझ पाता
वक़्त रहते ही जग जाता
अनमोल है मात-पिता वो
मेरे
प्यार जिनका अमर रह जाता
है
-
नितेश सिंह
(बेशुक्रा)
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