तन्हाईयां है जगत में, और
मै चाहता हूँ ज़िन्दगी
जिस भी चीज़ को चाहा मैंने, कभी
मुझे वो नहीं मिली
जिसके लिए मैंने गुलिस्तान
बनाया
खुशरंग फूलों से उसको सजाया
उसने कुचला उसे इस कदर
हो गया वो, था जैसे पहले
कभी
तन्हाईयां है जगत में, और मै चाहता हूँ ज़िन्दगी...
चाहता था उसे दिल-ओ-जान से
भी ज्यादा
संग जीने-मरने का किया था
वादा
पर चली गयी वो सितमगर
दिए कसमे-वादे तोड़ के सभी
तन्हाईयां है जगत में, और मै चाहता हूँ ज़िन्दगी...
उसके बिन, मेरा दिन कोई
होता न था
मिलने का कोई मौका मै खोता
न था
है इतनी दूर मुझसे वो ज़ालिम
अब कभी मुझे मिलेगी नहीं
तन्हाईयां है जगत में, और मै चाहता हूँ ज़िन्दगी...
सजा-ए-मौत ही था तौफा प्यार
का
क्यूंकि मै आशिक था एक
बेवफा यार का
चाहने लगा उस संगदिल को
जो शायद कभी मेरी थी ही
नहीं
तन्हाईयां है जगत में, और मै चाहता हूँ ज़िन्दगी...
दुनिया ही लुट जाये जिसके
पीछे
उजड़ जाये सब दिलो के बगीचे
क्यूँ जी रहा है वो प्यार
अब तक
बाद मरने के, मै सोचता हूँ
यही
तन्हाईयां है जगत में, और मै चाहता हूँ ज़िन्दगी
जिस भी चीज़ को चाहा मैंने, कभी मुझे वो नहीं मिली
- - नितेश सिंह (तन्हा)
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