Monday, 30 January 2017

गीता-ज्ञान १

खाली पड़ी दीवार पर चुपकी छिपकली ये सोचे
पकड़ी जो मैंने तो संभली, गिर जाती ये वरना निचे

सुबह-सुबह चिल्ला कर मुर्गा, इसी भ्रम में जीता है
बांग को सुनकर मुर्गे की, हर रोज़ सूरज उठता है

हम भी ईश की करनी को, अपने नाम पर है मड़ते
“अहंकार विमूड़ात्मा कर्ताहमिति मन्यते” [BG ३.२७]

लालच भरा है मन में, दिल में भरी है तृष्णा
अर्जुन भी पूछते गीता में “चंचलं हि मन: कृष्ण” [BG ६.३४]

एक मार्ग बताया भगवन ने, बस वही एक है ध्येय
कृष्ण ने उत्तर दिया “अभ्यासेन तु कौन्तेय” [BG ६.३५]

उस ईश्वर को हम याद रखे, नाम जपे हर वक़्त
सीख यही दी कृष्ण ने की “मन्मना भव मद्भक्त” [BG ९.३४ & १८.६५]

कितने दयालु है भगवन मेरे, वही है मेरे सच्चे गुरु
सिखा के सब कुछ छोड़ दिया कहकर “यथेच्छसि तथा कुरु” [BG १८.६३]

हम आत्मा, वो परम-आत्मा है यही बस एक सत्य है
सम्बन्ध-अभिध्येय को जाने बिना, ये सारा जगत बस मिथ्य है

क्या विज्ञान की बात करे जो विज्ञान ईश बिना है
उस शक्तिमान को ना जानना तो जीना शीश बिना है

जो जान जाये उस इश्वर को, कभी मिटती नहीं उसकी हस्ती
“ब्रह्मभूत: प्रसन्नात्मा न शोचति न कांक्षति” [BG १८.५४]

      -    नित्य मुकुंद दास (साधक)

Sunday, 29 January 2017

दासानुदास

         
राधे तू बड़-भगिनी, मै राधे का दास
इत्ती कृपा कीजे दीजे, नित्य वृन्दावन वास

भक्तण की तेरे चरण-वंदना, पाद-सेवा की आस
नित्य-सेवारत करूँ निवेदन, रहूँ दासानुदास

दर्शन की तेरे मोकु लालसा, दर्शन की रही प्यास
बिन दर्शन न मोकु भाए, ये जीवन, ये स्वास

सेवा में तेरी लगना चाहु, बिन-सेवा रहूँ उदास
सेवाभिलाशी अभागा हूँ मै, नित्य मुकुंद दास

      -    नित्य मुकुंद दास (अभागा)

ज़ाम


बैठा जब मै रात को,
कहने लगा एक बात को,
गुस्सा मुझे तब आने लगा
और सिर भी भन्नाने लगा
सोच समझ का होश न था
पर इतना मदहोश न था

कहने लगे सब शांत हो जा
चल जाकर चुप चाप सो जा
कुछ कर सकने का दम नहीं
मानव है तू कोई बम नहीं
neat pack लगाके दो-चार
दिखने लगे तुझे दो के चार
थप्पड़ जो तुझे पद गया एक
मुहं पर लगे गोबर का केक
वही गोबर जो वहां पड़ा है
सीधा और चुप-चाप खड़ा रह
रोज़ का तेरा यही ड्रामा
खुद को तू समझे ओसामा
लादेन जैसा काम तो कर
कोई देश अपने नाम तो कर
चल बता तू क्या चाहता है
खाली-पीली भन्नाता है

मै बोला मुझे तंग न करो
गुस्सा मेरा भंग न करो
देख लूँगा मै एक-एक को
और मारूंगा हरएक को
मै लादेन नहीं, न ओसामा
न बिल गेट्स, न ओबामा
छोटा आदमी मै छोटे काम
pack लगाता मै सुबह-शाम
गुस्सा मुझे बस आता तब
जब कोई कर जाता करतब
बात मेरी बस इतनी सी है
जब पीनी मुझको Whisky है
कौन नमूना पानी रख गया
मेरे साथ बेईमानी कर गया
जानता नहीं मै कौन हूँ
अपनी गली का Don हूँ
कितने कुत्ते मार गिराये
कितने मुर्गे कच्चे खाये
कौन मेरा ये काम करेगा
उस शख्स को मेरे नाम करेगा
चैन मुझे अब तभी पड़ेगा
जो वो मेरे चरण पड़ेगा
माफ़ी मांगेगा झुक कर
सलाम करेगा रुक-रुक कर
माना ये बात आम है
गलत बना जो ज़ाम है
बस माफ़ी चाहिए आना-कानी नहीं
मै whisky पीता हूँ पानी नहीं

इतने में फिर छोटू आया
गिरा हुआ सिग्रेट उठाया
बोला मुझको माफ़ करो
रास्ता यहाँ का साफ़ करो
तेरे जैसे रोज़ आते है
मुझको tip दे जाते है
माना तुझे सादा पानी मिला
Whisky किसी को दी पीला
तुझसे तो मिलता ठेंगा मुझे
वो tip दे गया मोटी मुझे
तू जाके अपना काम कर
मत मुझको बदनाम कर
दूंगा रख कर वरना चार
होगा तुझपर अत्याचार
ना माल मिला न मिलेगी जान
कुत्ता नहीं मै हूँ इंसान
करूँगा तेरा इतना अपमान
फिर हो जायेगा तू बेज़ुबान
चल खाली-पीली लफड़ा न कर
मुझसे और तू झगड़ा न कर
कल किसी की Whisky तुझे दे दूंगा
भरा पानी का ज़ाम उसे दे दूंगा
ऐसे ही मेरा धंधा चलता
कभी तेज़ कभी मंदा चलता
Tip से गुज़ारा है पगार कम
मुझ गरीब का कौन समझे गम
चलता हूँ साब है काम कई
मुझ जैसे है गुमनाम कई
छोटू पिंटू राजू कोई
अपना दर्द न समझे कोई
कोई Tip तो कोई ज़ाम दे जाता
आप जैसा कोई इल्ज़ाम दे जाता
कभी थप्पड़ कोई मार के जाता
तो कभी कोई खाके भी जाता
एहसान किसी का हम न रखें
ज़ाम फ्री का हम न चखें
मेहनत का ही दाम है लेते
छोटा-बड़ा हर काम कर लेते
कभी सेवा का मौका देना साब
अभी जाओ पर आते रहना साब

सुनकर मै तो रह गया दंग
सारा नशा मेरा हो गया भंग
काश मै होता बिल गेट्स, ओबामा
समाज-सुधारक करता कारनामा
पर मै आदमी एक आम हूँ
दुनिया की भीड़ में गुमनाम हूँ
अकेला चना भाड़ कैसे फोड़ू
किसे बचाऊं और किसको छोड़ूं
हे भगवन मुझको बुद्धि दे
आत्म-ज्ञान, आत्म-सुद्धि दे
जाता हूँ अभी मै अपने रास्ते
करूँगा कुछ इन सब के वास्ते
चलता हूँ पर कल फिर आऊंगा
I wish कि मै कुछ कर पाऊंगा
   -    नितेश सिंह (संवेदनशील)

Wednesday, 25 January 2017

रात्रि-दर्शन


एक दिन बैठा मै रात को
एक बात को लगा सोचने
आसमान को देख कर
लगा किसी को खोजने

आता कहां से सूरज है
जाती कहां को है ये मही
जो गुम हो जाते तारे दिन मे
क्या रात्रि को निकलेंगे सभी

सारी रात को चलता चंदा
सुबह कहां छुप जाता है
वर्षा के बाद कभी जो देखो
नभ सारा धुल जाता है

आसमान मे बादल जैसे
धुम्रपान सा लगता है
कभी-कभी बहु-रंग गगन भी
रंगायन प्रस्तुत करता है

कुदरत का कैसा करिश्मा है
कैसा ये चमत्कार है
क्या खूब रचना की भगवन ने
वही असली कलाकार है
-नित्य मुकुन्द दास (मन-मौजी खोजी)

परीक्षा का डर


न जाने मुझे, ये क्या हो रहा है
न नींद आ रही है, न होश खो रहा है

चिन्ता लगी हुई है, जैसे कोई युद्ध हो
कैसे गुज़ारु वक्त, कैसे सम्भालु खुद को

लगता है मेरे उदर मे, कोई भूत घुस गये है
गुड-गुड आवाज़ देकर, जो दर्द दे रहा

बेचैनी है इतनी, कहीं फेल ना हो जाऊँ
इस परीक्षा से मै, कैसे खुद को बचाऊँ

जब पढ़ता था तो, नींद मुझे आती थी
नही पढ़ता था तो, यही टेंशन मुझे खाती थी

काश किसी ने, ये पेपर out तो किया होता
Solutions के साथ सबको, personnel copy तो दिया होता

पर कोई फायदा नही, अब इम्तिहान की घङी है
प्रश्न एक आता नही, मेरी दुविधा ये बढ़ी है

कहीं से, हे ईश्वर! कोई चमत्कार तो हो जाये
सुबह उठुँ मै और ये सब, मात्र एक सपना हो जाये
- नितेश सिंह (व्याकुल)

Saturday, 21 January 2017

बेटियाँ


कायनात झुक जाती है
      जब पैदा होती बेटियाँ!
दुनिया कुछ भी कह ले पर,
      अच्छी होती है बेटियाँ!

बाप के मन को भाति है
मैय्या का हाथ बटाती है
भोली सूरत के कारण
ये सबको बड़ा लुभाती है
      भगवान इनको भेज कर, दुखी होता है, न करता बयाँ
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ

बेटों से पहले बोलना सीखें
चलना और समझना सीखें
एक वक़्त में काम कई तो
करना कोई इनसे सीखें
      गुणों को इनके बोल कर, थकती नहीं है मेरी जुबां
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ

घर के कामों में निपुण तो यें
खेल-कूद में भी आगे यें
प्रतिस्पर्दा चाहे कोई भी हो
अक्सर अव्वल रहतीं यें
      सारे जगत में नाम रोशन करती है यें बेटियाँ
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ

दफ्तर से थके जब पापा आते
पानी उनको यही पिलाते
देख कर इनकी मासूम अदा
पापा टेंशन भूल ही जाते
      सबसे अच्छी दोस्त पापा की, होती है यें बेटियाँ
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ

माँ की सच्ची सहेली बन जाती
मेक-अप उनका यही कराती
कौनसी क्रीम और कौनसा शैम्पू
नए फैशन से अवगत कराती
      छोटी बहन-सी बन जाती है, माँ की दुलारी बेटियाँ
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ

एकदिन यें मुंह मोड़ जाती है
बाबुल का आँगन छोड़ जाती है
पीछे बस अपनी यादें देकर
नए रिश्तें जोड़ यें जाती है
      अब समझा सबको उसदिन क्यूँ, बड़ा रुलाती है बेटियाँ
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ

इनको कभी न सताना तुम
आँखों में आंसूं न लाना तुम
बाप बनोगे बेटी के जब
तब खुद ही आजमाना तुम
      माँ-बहन तुम्हारी याद रखना, होती है किसी की बेटियाँ
      दुनिया कुछ भी कह ले पर, अच्छी होती है बेटियाँ
    -    नितेश सिंह (संवेदनशील)


Friday, 20 January 2017

तत्वज्ञान


अंधेरों में साये कभी दिखा नहीं करते,

ज़िन्दगी जीने वाले कभी मरा नहीं करते,

डर जाते है जो लोग मुश्किलें आने पर

काम कोई पूरा वो करा नहीं करते


ज़िन्दगी में फ़लसफ़े हज़ार बना लो, पर

ज़रूरी नहीं एक से भी चलेगी गुज़र

जिसका इस्तेमाल कई बार किया हो

जरूरतों में दाव वही दिखायेगा असर


ठोकरें खाकर सँभलते बहुत मिलेंगे

गिर-गिर कर भी चलते बहुत मिलेंगे

जो दूसरों के गिरने-सँभलने से संभले

वो राही सफलता की ओर बड़ चलेंगे


भगवद-प्रेम के सागर में गोता जो खाये

भौतिक-मुश्किलों से निर्भय भीड़ जाये

जानता है वो उस ब्रह्म-तत्व को

भव-सागर न तरेगा जिसके सिवाय
  
   -    नित्य मुकुंद दास (तत्व-दर्शी)