न जाने मुझे, ये क्या हो रहा है
न नींद आ रही है, न होश खो रहा है
चिन्ता लगी हुई है, जैसे कोई युद्ध हो
कैसे गुज़ारु वक्त, कैसे सम्भालु खुद को
लगता है मेरे उदर मे, कोई भूत घुस गये है
गुड-गुड आवाज़ देकर, जो दर्द दे रहा
बेचैनी है इतनी, कहीं फेल ना हो जाऊँ
इस परीक्षा से मै, कैसे खुद को बचाऊँ
जब पढ़ता था तो, नींद मुझे आती थी
नही पढ़ता था तो, यही टेंशन मुझे खाती थी
काश किसी ने, ये पेपर out तो किया होता
Solutions के साथ सबको, personnel copy तो दिया होता
पर कोई फायदा नही, अब इम्तिहान की घङी है
प्रश्न एक आता नही, मेरी दुविधा ये बढ़ी है
कहीं से, हे ईश्वर! कोई चमत्कार तो हो जाये
सुबह उठुँ मै और ये सब, मात्र एक सपना हो जाये
- नितेश सिंह (व्याकुल)
No comments:
Post a Comment